ये है वो नोबेल विनर फॉर्मूला जिसके गणित से FII भारतीय बाजार से निकलकर चीन में कर रहे निवेश

विदेशी निवेशक पिछले दिनों भारतीय बाजार से 50 हजार करोड़ से ज्यादा की निकासी कर चुके हैं. भारत अर्थव्यवस्था से लेकर बाजार तक हर मोर्चे पर मजबूत है. इसके बाद भी विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार निकलना हैरान करने वाला है. असल में इस निकासी के पीछे भारतीय बाजार का एक नोबेल विनर फॉर्मूले के आधार पर महंगा साबित होना है. जानते हैं क्या है यह फॉर्मूला और कैसे काम करता है.

इस फॉर्मुले के हिसाब से भारतीय बाजार बहुत महंगा है. Image Credit: Eugene Mymrin/Moment/Getty Images

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री रॉबर्ट जे शिलर ने अपनी किताब “इरेशनल एक्सुबेरेंस” में पहली बार मार्च 2000 में चक्रीय रूप से समायोजित मूल्य से आय (सीएपीई ) अनुपात का जिक्र किया. किताब के बाजार में आने के करीब एक महीने के भीतर इस फॉर्मूला के आधार पर यूएस एसएंडपी कंपोजिट इंडेक्स में डॉट-कॉम बस्ट आया और बाजार में भारी गिरावट आई. इसके बाद से इसका नाम शिलर पी/ई हो गया. इसे दुनियाभर के बाजारों में स्टॉक इंडेक्स के मूल्यांकन के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

यही वह फॉर्मूला है, जिसके गणित के आधार पर विदेशी निवेशक भारतीय बाजार को छोड़कर चीनी बाजार की तरफ आकर्षित हो रहे हैं. इन्वेटमेंट रिसर्च फर्म, “द आइडिया फार्म” की एक रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल भारतीय बाजार का शिलर पी/ई 43.1 गुना है. यह आंकड़ा भारतीय बाजार के 20 साल के औसत शिलर पी/ई 25.18 गुना और 10 साल के औसत 24.16 गुना से काफी ज्यादा है.

क्या जायज है भारतीय बाजार का उभार

भारतीय बाजार के हाई शिलर पी/ई को कई तरह से न्यायसंगत ठहराया जा सकता है. मसलन, भारतीय अर्थव्यवथा की तीव्र विकास दर एक बड़ा आधार है, जिससे भारतीय बाजार के हाई शिलर पी/ई को जायज माना जाता है. भारतीय बाजार का पारंपरिक पी/ई 25 है. जबकि, टॉप शिलर पी/ई अक्टूबर 2007 में 49.53 गुना रहा. यह शिखर 2008 में अमेरिकी सब-प्राइम हाउसिंग मार्केट की वजह से आई वैश्विक गिरावट से कुछ महीने पहले ही बना था. मोटे तौर पर यह देखा गया है कि आधारहीन उत्साह और शिलर पी/ई के शीर्ष स्तरों से बाजार में गिरावट आती है, जबकि कम मूल्यांकन बाजार में तेजी के संकेत देता है.

क्या चीनी बाजार का शिलर पी/ई

चीनी बाजार का मौजूदा शिलर पी/ई 12 गुना है. इस हिसाब से चीनी बाजार निवेश के लिए बहुत ही किफायती हैं. हालांकि, यह बात अलग है चीनी सरकार ने बाजारों को स्वतंत्र रूप से चलने से रोका हुआ है. लेकिन, इसके बाद भी विदेशी निवेशक क्लासिक वैल्यू के आधार पर चीन को दुनिया के सबसे आकर्षक बाजार के रूप में देख रहे हैं.

निवेशकों को क्या बताता है शिलर का यह फॉर्मूला

यह जानना बेदह जरूरी है कि इस फॉर्मूला से निवेशकों को बाजार मूल्यांकन के बारे में क्या जानने को मिलता है. असल में यह एक मूल्यांकन का तरीका है. इसमें किसी कारोबार के एक व्यापार चक्र का आकलन किया जाता है. इसके लिए कॉर्पोरेट मुनाफे की गणना 10 साल की अवधि में प्रति शेयर वास्तविक आय (ईपीएस) के आधार की जाती है. शिलर ने इसे वास्तविक मुद्रास्फीति के रूप में परिभाषित किया है, जिसे इंडेक्स पर वास्तविक आय के 10-वर्षीय मूविंग औसत से विभाजित किया जाता है. बेंजामिन ग्राहम और डेविड डोड की 1934 की अवधारणाओं से प्रेरित इस फॉर्मुले में मुद्रास्फीति और चक्रीय विविधताओं को समायोजित कर पारंपरिक पी/ई अनुपातों में सुधार किया गया है. यह आय की ताकत और मूल्यांकन गुणकों का का भी ध्यान रखता है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

यूटा यूनिवर्सिटी के वुडबरी बिजनेस स्कूल के शोधकर्ता लियो चान कहते हैं कि निवेशक कई बार आकलन में इस बात का ध्यान नहीं रखते हैं कि शिलर पी/ई जब बिना किसी आधार के बढ़ा हुआ होता है, तो गिरावट का डर रहता है. अगर, इसके पीछे ठोस कारण हों, तो बढ़ा हुई शिलर पी/ई हमेशा बाजार के टूटने का जोखिम का संकेत नहीं देता है. इसके बारे में चान ने एमडीपीआई के जर्नल ऑफ रिस्क एंड फाइनेंशियल मैनेजमेंट में प्रकाशित एक शोध पत्र में विस्तार से जानकारी दी है, जिसे यहां क्लिक कर पढ़ा जा सकता है.