बिना टेंशन और तेजी से खरीद सकेंगे स्टॉक्स, जानें क्या है एल्गो ट्रेडिंग?
सेबी ने आम निवेशकों के लिए Algorithm या एल्गो ट्रेडिंग का प्रस्ताव दिया है. इसके लागू होने के बाद ट्रेडिंग तेजी से हो सकेगी और ज्यादा स्ट्रेस भी नहीं लेना होगा. लेकिन क्या होती है एल्गो ट्रेडिंग, कैसे होती है? निवेशकों को क्या करना होगा और सेबी के क्या नियम हो सकते हैं...चलिए जानते हैं सबकुछ.
शेयर बाजार में अब आम निवेशक यानी रिटेल इंवेस्टर्स को Algorithm Trading करने का मौका भी मिलेगा. सिक्यॉरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया यानी सेबी ने एल्गोरिदम या एल्गो ट्रेडिंग का प्रस्ताव दिया है. इसके बाद ट्रेडिंग तेज और बिना स्क्रीन पर आंख गड़ाए हो सकेगी. लेकिन Algo Trading क्या है? इससे जुड़े रिस्क क्या हैं, और उनका इलाज – ये सब आपको इस आर्टिंकल में बताएंगे.
फिलहाल भारत में करीब 10 करोड़ रिटेल निवेशक हैं, इस हिसाब से हर पांच परिवार में से एक निवेशक है. हर कोई सारा काम छोड़ कर निवेश नहीं करता. इनमें से कई लोग ऐसे ही होंगे जो अपनी जॉब के साथ स्टॉक मार्केट में निवेश करते हैं. हर कोई इसलिए बाजार से पैसा कमाना चाहता है क्योंकि रिटर्न्स ही इतने आकर्षक हैं. लेकिन दिनभर कोई स्टॉक के रियल टाइम प्राइस पर नजर बनाए नहीं रख सकता कि वो कितना ऊपर या नीचे जा रहा है. इसी समस्या को सुलझाता है एल्गो ट्रेडिंग.
क्या है एल्गो ट्रेडिंग?
एल्गो ट्रेडिंग को ऐसे समझिए, जैसे कंप्यूटर खुद आपके लिए ट्रेड कर रहा हो. इस कंप्यूटर को आपको कुछ नियम बताने होंगे, सेटिंग करके, जैसे प्राइस, समय, या वॉल्यूम, और इसके बाद कंप्यूटर खुद-ब-खुद ट्रेड कर देगा.
मान लीजिए आपको टेक्सटाइल सेक्टर के स्टॉक्स में दिलचस्पी है, तो आप एल्गो को प्रोग्राम कर सकते हैं कि जब किसी स्टॉक का प्राइस एक हफ्ते में 5 फीसदी बढ़े, तो खरीदारी कर लेनी है, या जब 5 फीसदी गिरे, तो उसे बेच देना है. इसका यही फायदा होगा कि आपको स्क्रीन से चिपके रहने की जरूरत नहीं होगी. सब कुछ ऑटोमैटिक हो जाएगा.
एल्गोरिदम कोई अलग से डिवाइस नहीं है, ये एक तरह का टूल है जो इसे सेट करने वाले की इंस्ट्रक्शन का पालन करता है. जैसे यूट्यूब पर जो एल्गो होता है वह अपने आप काम करता है. उसे आप सेट नहीं करते. वो नजर रखता है, आप क्या देख रहे हैं, क्या सुन रहे हैं, क्या पसंद कर रहे, क्या ना पसंद कर रहे, मतलब आपकी हर गतिविधि. फिर उसी हिसाब से वह आपको वीडियोज दिखाता है.
ऐसा ही एल्गो ट्रेडिंग होगा जहां आप उसे पहले से ही इंस्ट्रक्शन देंगे और वह उस हिसाब से ट्रेडिंग करेगा.
अब तक कहां था एल्गो ट्रेडिंग?
एल्गो ट्रेडिंग कोई नई चीज नहीं है, बस ये रिटेल निवेशकों के लिए नहीं था. एल्गो ट्रेडिंग की शुरुआत तो 2008 में ही शुरू हो गई थी लेकिन तब इसे केवल संस्थागत निवेशकों (बड़े) ही इस्तेमाल कर सकते थे. रिटेल निवेशकों के लिए नियम 2021 में आए. इन नियमों के तहत, ब्रोकर पर एल्गो ट्रेडिंग की जिम्मेदारी डाली गई. रिटेल निवेशक केवल ब्रोकर द्वारा दिए गए एल्गो का ही इस्तेमाल कर सकते थे, और वे केवल ब्रोकर के सर्वर पर ही चलते थे.
लेकिन ये सेटअप सही नहीं था. अगर ब्रोकर के सिस्टम में गड़बड़ी हो जाए, उनकी रणनीति में कोई खामी हो, या अगर वे हेरफेर करें, तो रिटेल निवेशकों को भारी नुकसान हो सकता था. इसे देखते हुए SEBI ने कदम उठाए. SEBI ने सिर्फ एल्गो ट्रेडिंग पर सख्ती नहीं की, बल्कि इसे बेहतर और सुरक्षित बनाने की दिशा में कदम उठाए.
SEBI के क्या हैं नए प्रस्ताव?
ऐसे ऑर्डर जो एक निश्चित स्पीड या वॉल्यूम से ज्यादा हों, उन्हें एल्गो ऑर्डर के रूप में माना जाएगा. ब्रोकर को हर एल्गोरिदम के लिए स्टॉक एक्सचेंज से मंजूरी लेनी होगी. थर्ड-पार्टी एल्गो प्रोवाइडर्स को ब्रोकर का एजेंट माना जाएगा, और उन्हें भी स्टॉक एक्सचेंज से रजिस्ट्रेशन कराना होगा.
दो तरह के होंगे एल्गो
SEBI ने एल्गो को दो हिस्सों में बांटा है:
व्हाइट बॉक्स एल्गो: इसमें लॉजिक पूरी तरह पारदर्शी होता है. निवेशक यह देख सकते हैं कि यह कैसे काम करता है. उदाहरण के लिए, अगर किसी स्टॉक का प्राइस 100 रुपये पहुंच जाए, तो इसे खरीदने का एल्गोरिदम.
ब्लैक बॉक्स एल्गो: इसमें लॉजिक निवेशकों को समझ में नहीं आता. यह अपेक यानी अस्पष्ट होता है. इसलिए ऐसे एल्गोरिदम प्रोवाइडर्स को “रिसर्च एनालिस्ट” के रूप में रजिस्टर करना होगा और स्टॉक एक्सचेंज को डिटेल्ड रिपोर्ट देनी होगी.
एल्गो ट्रेडिंग में क्या है सुरक्षा के उपाय?
एल्गो ट्रेडिंग में किल स्विच नाम का इमरजेंसी ब्रेक लगाया जाएगा. अगर एल्गो गलत तरीके से काम करने लगे, तो यह तुरंत ट्रेडिंग रोक देगा. स्टॉक एक्सचेंज को एल्गोरिदम को बैक-टेस्ट (पुराने डेटा पर जांच) और स्ट्रेस-टेस्ट (गंभीर परिस्थितियों में परख) करना होगा.
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एल्गो ट्रेडिंग से जुड़े रिस्क
नियमों के तहत, हर एल्गो को स्टॉक एक्सचेंज से मंजूरी लेनी होगी. लेकिन बाजार की परिस्थितियां तेजी से बदलती हैं. अगर मंजूरी मिलने में देरी हुई, तो रणनीति पुरानी हो सकती है. इसे हल करने के लिए SEBI ने कुछ एल्गो के लिए फास्ट-ट्रैक रजिस्ट्रेशन का प्रस्ताव दिया है.
इससे शेयर बाजार के बदलने की संभावना है, क्योंकि एल्गो ट्रेडिंग तेज और सटीक है और निवेशकों को भावनात्मक फैसलों से बचाएगी. कई बार निवेशक डर या लालच में फैसले लेते हैं जो एल्गो ट्रेडिंग में मुमकिन नहीं होगा. फिलहाल सेबी ने इसे लेकर कंसल्टेशन पेपर जारी किया है, इस पर फीडबैक के बाद नियम जारी होंगे.