उड़ते प्लेन में कैसे काम करता है Wi-Fi, जानें किस टेक्निक का यूज कर रही है Air India

एयर इंडिया ने अपनी घरेलू उड़ानों पर इन-फ्लाइट वाई-फाई सेवा शुरू की है, जो एयरबस A350, बोइंग 787-9 और कुछ एयरबस A321neo विमानों पर उपलब्ध है. इसमें यात्री वाई-फाई का उपयोग सैटेलाइट कम्युनिकेशन के माध्यम से कर सकते हैं, जिससे इंटरनेट ब्राउज़िंग, सोशल मीडिया एक्सेस और काम के अपडेट्स संभव हैं.

इसमें यात्री वाई-फाई का उपयोग सैटेलाइट कम्युनिकेशन के माध्यम से कर सकते हैं

एयर इंडिया ने नए साल के अवसर पर अपनी घरेलू उड़ानों पर इन-फ्लाइट वाई-फाई सेवा शुरू की है, और इस प्रकार यह पहली भारतीय एयरलाइन बन गई है जो यह सुविधा प्रदान करती है. यह सेवा एयर इंडिया के सभी एयरबस A350, बोइंग 787-9 और कुछ एयरबस A321neo विमानों पर उपलब्ध है. शुरुआत में पैसेंजर वाई-फाई सेवा का मुफ्त उपयोग कर सकते हैं. इसमें यात्री वाई-फाई का उपयोग सैटेलाइट कम्युनिकेशन के माध्यम से कर सकते हैं.

वाई-फाई का उपयोग कैसे करें:

  1. अपने डिवाइस पर वाई-फाई चालू करें और वाई-फाई सेटिंग्स में जाएं.
  2. ‘Air India Wi-Fi’ नेटवर्क को चुनें.
  3. जब आपको एयर इंडिया का पोर्टल दिखे, तो अपना PNR और अंतिम नाम दर्ज करें.
  4. मुफ्त इंटरनेट सेवा का आनंद लें.

कौन सी तकनीक का यूज हो रही

इन-फ्लाइट वाई-फाई कनेक्टिविटी सैटेलाइट कम्युनिकेशन सिस्टम के माध्यम से उपलब्ध कराई जाती है. इस तकनीक से यात्री उड़ान के दौरान इंटरनेट से जुड़े रह सकते हैं और वे ब्राउज़िंग, सोशल मीडिया एक्सेस करने, और काम के लिए अपडेट्स प्राप्त कर सकते हैं.

सैटेलाइट कम्युनिकेशन कैसे काम करता है.

सिग्नल ट्रांसमिशन:

  • एक ट्रांसमीटर (जमीन पर या विमान में) सिग्नल को सैटेलाइट की ओर भेजता है। यह सिग्नल रेडियो ट्रांसमिशन के माध्यम से वायुमंडल में यात्रा करता है.

सैटेलाइट रिसेप्शन:

  • सैटेलाइट सिग्नल प्राप्त करता है और उसे बढ़ाता है. फिर वह सिग्नल को पृथ्वी पर एक ग्राउंड स्टेशन या विमान तक भेजता है.

ग्राउंड स्टेशन या विमान रिसेप्शन:

  • ग्राउंड स्टेशन या विमान का ऑनबोर्ड सिस्टम सैटेलाइट से सिग्नल प्राप्त करता है और फिर यह इंटरनेट या डेटा कनेक्शन को विमान के अंदर वाई-फाई नेटवर्क के माध्यम से यात्रियों के डिवाइस तक भेजता है.

कम्युनिकेशन लिंक:

  • विमान, सैटेलाइट और ग्राउंड स्टेशन के बीच कनेक्शन से डेटा का लगातार ट्रांसमिशन संभव होता है. सैटेलाइट्स जियोस्टेशनरी (पृथ्वी के सापेक्ष स्थिर) या लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) होते हैं, जो यह तय करता है कि डेटा ट्रांसमिशन की गति कितनी होगी.