Ola और Uber के अलग-अलग किराए वाले मामले में सरकार ने दिखाई सख्ती, iOS-Android जांच के घेरे में

कैब सर्विस प्रदान करने वाली कंपनियों को लेकर पिछले कुछ दिनों से खबर आ रही है कि वह ऑपरेटिंग सिस्टम के आधार पर ग्राहकों से कम-ज्यादा पैसे वसूलते हैं. बात इतनी बढ़ी की सरकार ने भी इसमें हस्तक्षेप कर दिया है. इसको लेकर सरकार ने दोनों OS को जांच के घेरे में ले लिया है.

ओला उबर प्राइस डिफ्रेंस मामला Image Credit: @Tv9

Ola Uber Price Difference: अगर आप कहीं आने-जाने के लिए ओला या उबर जैसे कैब सर्विस का इस्तेमाल करते हैं तब आपने इससे जुड़ी अहम बात जरूर सुनी होगी. दरअसल पिछले कुछ महीनों से इन कैब सर्विस देने वाले प्लेटफार्म को लेकर सोशल मीडिया पर आरोप लगाया जा रहा है कि ये एप्लीकेशन मोबाइल के ऑपरेटिंग सिस्टम के आधार पर किराये को बढ़ाती और घटाती हैं. इन दावों के सपोर्ट करने के लिए कई लोगों ने उदाहरण के तौर पर अंतर भी बताया है. मामला इतना बढ़ा कि बात सरकार तक चली गई. कंज्यूमर मिनिस्टर की ओर से इस मामले पर संज्ञान भी लिया गया. अब यह बात संसद तक चली गई है.

संसद में उठे सवाल

सरकार ने 12 मार्च को लोकसभा में पुष्टि की कि कैब एग्रीगेटर्स उबर और ओला कथित तौर पर फोन के ऑपरेटिंग सिस्टम के आधार पर अलग-अलग किराया वसूल रहे हैं. इसके बाद सरकार ने एप्पल और एंड्रॉयड को जांच के दायरे में ला दिया है. संसद सदस्यों की ओर से उठाए गए इस मुद्दे ने एल्गोरिदम के आधार पर प्राइस डिफरेंस किए जाने वाले मॉडल पर चिंता जताई है.

सांसद बालाशोवरी वल्लभनेनी और रवींद्र चव्हाण की ओर से उठाए गए सवाल के जवाब में केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रहलाद जोशी ने सदन को सूचित किया कि सेंट्रल कंज्यूमर प्रोटेक्शन एसोसिएशन ने कथित फेयर डिफरेंस को लेकर किए गए शिकायत पर ध्यान दिया है और 10 जनवरी 2025 को उबर और ओला को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है. मंत्री ने आगे यह भी कहा कि दोनों कंपनियों ने ऐसी किसी भी तरह की गतिविधि से इनकार किया है.

कड़ा कर रहे नियम

सरकार डिजिटल मार्केटप्लेस में नियमों को कड़ा कर रही है. इसमें भी मुख्य रूप से ई-कॉमर्स नियम 2020 के नियमों को लेकर अधिक ध्यान दे रही है जो प्लेटफॉर्मों को कीमतों में हेरफेर करने या मनमानी कारणों के आधार पर अलग-अलग फेयर वसूलने से रोकता है. इस मामले को लेकर यह टेस्ट करने की उम्मीद है कि इंडियन रेगुलेटर किस हद तक डिजिटल सर्विस में ट्रांसपेरेंसी लागू कर सकते हैं जिससे इस तरह के एल्गोरिदम बेस्ड वसूली न की जा सके.