अलीगढ़ के सास-दामाद ने कर दी ये बड़ी गलती, पुलिस ने इस टेक्नोलॉजी से ऐसे कर लिया ट्रैक

अलीगढ़ में सास और दामाद की एक अजीब प्रेम कहानी ने पुलिस को हैरान कर दिया, लेकिन अब तकनीक के सहारे पुलिस ने इनका लोकेशन कैसे खोजा, यह कहानी और भी दिलचस्प है. GPS, IMEI और कॉल रिकॉर्ड से आखिर पुलिस ने क्या-क्या किया? जानिए पूरी खबर में.

कैसे ट्रैक हुए सास-दामाद Image Credit: Money9 Live

How Police Tracked Aligarh Couple: अलीगढ़ के मडराक थाना क्षेत्र से सामने आई सास-दामाद की प्रेम कहानी ने पूरे देश को चौंका दिया. बेटी की शादी से महज 9 दिन पहले उसकी मां अनीता देवी अपने होने वाले दामाद राहुल के साथ फरार हो गई. 6 अप्रैल से गायब ये जोड़ी अब पुलिस के रडार पर है और अब पुलिस ने उनका नया ठिकाना भी ट्रैक कर लिया है. ऐसे कई मामले होते हैं जहां पुलिस लोगों की लोकेशन उनके फोन के जरिए ट्रैक कर लेती है. ऐसे में इस खबर में जानते हैं कि क्या हैं वे तकनीक जिसकी मदद से पुलिस किसी को भी कर सकती है ट्रैक.

मोबाइल नंबर और CDR से शुरू होती है खोज

CDR यानी कॉल डिटेल रिकॉर्ड किसी भी मोबाइल नंबर से की गई या प्राप्त कॉल, भेजे गए मैसेज और डेटा इस्तेमाल का पूरा ब्यौरा देता है. ये रिकॉर्ड टेलीकॉम कंपनियों के पास सुरक्षित रहते हैं और पुलिस इनकी मदद से यह पता लगाती है कि संदिग्ध व्यक्ति ने आखिरी बार कहां से फोन किया था या कॉल रिसीव की थी.

इसमें वह मोबाइल टावर भी दिखाए जाते हैं जिनसे फोन जुड़ा था या जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि व्यक्ति किस इलाके में था. हालांकि यह तरीका 100 फीसदी सटीक नहीं होता, लेकिन लोकेशन का मोटा-माटी अंदाजा मिल जाता है.

सेल टावर ट्रायएंगुलेशन

अगर फोन ऑन हो, तो यह आसपास के तीन या अधिक मोबाइल टावर से कनेक्ट होता है. इन टावरों के सिग्नल स्ट्रेंथ और लोकेशन के आधार पर पुलिस फोन की संभावित स्थिति का त्रिकोणमितीय गणना (triangulation) करती है, जो कुछ सौ मीटर की सटीकता तक पहुंच सकती है. यह खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोगी होता है जहां जीपीएस सिग्नल कमजोर हो सकता है.

IMEI नंबर

हर मोबाइल फोन को एक यूनिक पहचान मिलती है जिसे IMEI (International Mobile Equipment Identity) नंबर कहते हैं. जब भी कोई फोन ऑन होता है या किसी नेटवर्क से जुड़ता है, उसका IMEI नंबर सर्विस प्रोवाइडर के पास रजिस्टर होता है.

अगर कोई व्यक्ति सिम बदल भी लेता है फिर भी IMEI नंबर वही रहता है, जिससे पुलिस उस डिवाइस को ट्रैक कर सकती है. IMEI नंबर के आधार पर फोन को ब्लैकलिस्ट भी किया जा सकता है जिससे वह किसी भी नेटवर्क से कनेक्ट नहीं हो पाएगा.

GPS आधारित लोकेशन ट्रैकिंग

नई पीढ़ी के स्मार्टफोन में GPS (Global Positioning System) तकनीक मौजूद होती है. यह तकनीक 12 या अधिक सैटेलाइट्स से कनेक्ट होकर फोन की लोकेशन कुछ फीट तक की सटीकता से बता सकती है.

फोन की लोकेशन अगर चालू है तो बैकग्राउंड में चलने वाले एप्लिकेशन के जरिए यह डेटा टेलीकॉम कंपनी या पुलिस को भेजा जा सकता है. अमेरिका में यह सिस्टम आपातकालीन सेवाओं के लिए भी अनिवार्य कर दिया गया है और भारत में भी इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है.

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सिम कार्ड रजिस्ट्रेशन और अंतिम एक्टिविटी का डेटा

सिम कार्ड किसी व्यक्ति के नाम से रजिस्टर्ड होता है. अगर कोई व्यक्ति नई सिम लेकर पुराने फोन में इस्तेमाल करता है तो पुलिस सिम के रजिस्ट्रेशन रिकॉर्ड से उसकी पहचान कर सकती है. इसके अलावा, अगर फोन स्विच ऑफ कर दिया गया है, तो भी सेवा प्रदाता उस डिवाइस की ‘लास्ट एक्टिव लोकेशन’ यानी आखिरी बार कब और कहां नेटवर्क से जुड़ा था, इसकी जानकारी पुलिस को दे सकता है.

अलीगढ़ की इस ‘फरार प्रेम कहानी’ को ट्रैक करने में ये टेकनिक काम आई है. GPS, CDR, IMEI और ट्रायएंगुलेशन जैसे तरीकों के ज़रिए पुलिस अब किसी को भी लोकेट करने में सक्षम है. चाहे वो मोबाइल नंबर से हो या सिर्फ डिवाइस के जरिए.