क्या है सोशल इंजीनियरिंग अटैक, जिससे मिडिल क्लास को लग रहा चूना; इन 5 पर रखें नजर

साइबर अपराधी अब सिर्फ तकनीकी हैकिंग तक सीमित नहीं हैं, बल्कि लोगों को मानसिक रूप से छलकर संवेदनशील जानकारी चुराने का नया तरीका अपना रहे हैं. जानिए इस डिजिटल ठगी के पीछे की सच्चाई और कैसे बच सकते हैं इस खतरनाक हमले से.

इंटरनेट पर हर कदम संभलकर! Image Credit: VICTOR de SCHWANBERG/SPL/Getty Images

Social Engineering attacl Prevention: इंटरनेट की दुनिया में खतरे सिर्फ वायरस और हैकिंग तक सीमित नहीं हैं बल्कि सोशल इंजीनियरिंग नामक एक तकनीक भी तेजी से साइबर अपराधियों का हथियार बन रही है. यह एक ऐसी साइबर रणनीति है जिसमें हमलावर लोगों को भावनात्मक रूप से प्रभावित करके उनसे संवेदनशील जानकारी हासिल कर लेते हैं. सोशल इंजीनियरिंग अटैक में कोई भी व्यक्ति आसानी से फंस सकता है क्योंकि इसमें तकनीकी खामियों का नहीं बल्कि आपके दिमाग से खेला जाता है.

कैसे काम करता है सोशल इंजीनियरिंग अटैक?

सोशल इंजीनियरिंग हमलों को अंजाम देने के लिए अपराधी पहले अपने टारगेट का डेटा इकट्ठा करते हैं. वे संभावित कमजोरियों की जांच करते हैं फिर पीड़ित का भरोसा जीतकर उसे किसी गलती के लिए उकसाते हैं. यह गलती किसी संदिग्ध लिंक पर क्लिक करने, किसी अज्ञात फाइल को डाउनलोड करने या निजी जानकारी साझा करने से जुड़ी हो सकती है.

इन हमलों की सबसे खतरनाक बात यह है कि यह सॉफ्टवेयर या हार्डवेयर की कमजोरी का फायदा नहीं उठाते बल्कि इंसानों की गलती पर निर्भर होते हैं जो अनुमान लगाना मुश्किल बना देता है.

सोशल इंजीनियरिंग अटैक के प्रमुख प्रकार

  1. बेटिंग – लालच में फंसाने वाला हमला

इस हमले में हमलावर किसी लाभकारी चीज का लालच देकर पीड़ित को जाल में फंसाता है. उदाहरण के लिए, साइबर अपराधी मैलवेयर-इंफेक्टेड USB ड्राइव किसी सार्वजनिक स्थान जैसे ऑफिस के बाहर या पार्किंग में गिरा सकते हैं. जिज्ञासावश कोई कर्मचारी इसे उठाकर अपने कंप्यूटर में लगाएगा और इसी के साथ सिस्टम संक्रमित हो जाएगा.

ऑनलाइन बेटिंग के मामले में कोई आकर्षक विज्ञापन किसी वेबसाइट पर दिखाया जाता है, जिस पर क्लिक करने से मैलवेयर डाउनलोड हो जाता है.

  1. स्केयरवेयर – डराकर ठगी करने वाला हमला

स्केयरवेयर में पीड़ित को डराया जाता है कि उसका सिस्टम वायरस से संक्रमित हो चुका है और उसे तुरंत एक सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने की सलाह दी जाती है. यह सॉफ्टवेयर असल में मैलवेयर होता है जो सिस्टम को नुकसान पहुंचा सकता है.

  1. प्रीटेक्स्टिंग – झूठे बहाने बनाकर जानकारी चुराने वाला हमला

इस हमले में हमलावर खुद को बैंक अधिकारी, सरकारी कर्मचारी, पुलिस, या किसी भरोसेमंद व्यक्ति के रूप में पेश करता है और कहता है कि उसे किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए जानकारी चाहिए. वह आपकी पर्सनल डिटेल्स, बैंक अकाउंट नंबर, पासवर्ड या अन्य संवेदनशील डेटा मांग सकता है.

  1. फिशिंग – ईमेल या मैसेज के जरिए ठगी

फिशिंग सबसे आम सोशल इंजीनियरिंग हमला है, जिसमें ईमेल या टेक्स्ट मैसेज के जरिए लोगों को झांसा दिया जाता है.

उदाहरण के लिए, किसी यूजर को एक फर्जी ईमेल भेजा जाता है जिसमें लिखा होता है कि उसका बैंक अकाउंट ब्लॉक हो गया है और उसे तुरंत लॉगिन करके अपडेट करने की जरूरत है. ईमेल में एक लिंक दिया जाता है, जो दिखने में असली बैंक की वेबसाइट जैसा ही लगता है लेकिन असल में वह हैकर्स की बनाई हुई नकली वेबसाइट होती है. जैसे ही यूजर अपना लॉगिन डिटेल डालता है यह जानकारी सीधे हमलावर तक पहुंच जाती है.

  1. स्पीयर फिशिंग – टार्गेटेड साइबर हमला

यह फिशिंग का एक ज्यादा एडवांस रूप है, जिसमें हमलावर किसी विशेष व्यक्ति या कंपनी को निशाना बनाता है. इसमें वह पीड़ित के बारे में पूरी रिसर्च करता है और एक ऐसा ईमेल भेजता है जो पूरी तरह असली लगता है.

उदाहरण के लिए, कोई हैकर किसी कंपनी के IT हेड की पहचान करके उसके नाम से एक ईमेल भेजता है जिसमें कर्मचारियों से पासवर्ड बदलने को कहा जाता है. चूंकि यह ईमेल आंतरिक संचार जैसा दिखता है, कर्मचारी उस पर भरोसा कर लेते हैं और हैकर को संवेदनशील डेटा मिल जाता है.

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कैसे बचें सोशल इंजीनियरिंग अटैक से?