साइबर फ्रॉड के पीछे टेक्निकल एक्सपर्ट, WITT के मंच पर दिग्गजों ने बताया कैसे हो रहा धोखाधड़ी का खेल

WITT 2025: साइबर क्राइम की घटनाएं सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि इस तरह की सीरियस ऑर्गेनाइज्ड क्राइम म्यांमार, कंबोडिया और लाओस से हो रहे हैं. हमारी विकसित होती तकनीकें हमलावरों के लिए नए दरवाजे खोल रही हैं.

'साइबर सिक्योरिटी सेफगार्डिंग द फ्यूचर. Image Credit: Tv9 Network

WITT 2025: टीवी9 नेटवर्क के’ व्हाट इंडिया थिंक्स टुडे‘ समिट के दूसरे दिन ‘साइबर सिक्योरिटी सेफगार्डिंग द फ्यूचर’ के सेशन में साइबर सुरक्षा पर गहन चर्चा हुई. इस चर्चा में IIRIS की CEO (भारत, ग्लफ और अफ्रीका), सागरिका चक्रवर्ती, क्विकहील के ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर संजय काटकर, साइबरमीडिया के चेयरमैन एंड एमडी प्रदीप गुप्ता, एडवोकेट और साइबर व एआई कानून विशेषज्ञ पवन दुग्गल और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ कनिष्क गौर जैसे दिग्गज शामिल हुए. देश में जिस तरह से टेक्नोलॉजी का विस्तार हुआ है, उसी तेजी से साइबर फ्रॉड की घटनाएं भी बढ़ी हैं. सागरिका चक्रवर्ती ने कहा कि साइबर फ्रॉड के पीछे कोई और नहीं बल्कि टेक्निकल एक्सपर्ट हैं. पारंपरिक रूप से ये चोर पुलिस का खेल हैं.

दूसरे देशों से साइबर फ्रॉड को दिया जा रहा अंजाम

कनिष्क गौर ने कहा कि साइबर क्राइम की घटनाएं सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि इस तरह की सीरियस ऑर्गेनाइज्ड क्राइम म्यांमार, कंबोडिया और लाओस से हो रहे हैं. उन्होंने कहा भारत, श्रीलंका, बांग्लादेश और बांग्लादेश के करीब 50 हजार लोग, जो टूरिस्ट वीजा पर इन देशों में गए हैं, वो अब साइबर क्राइम गैंग का हिस्सा हैं. वो लोगों अपनी जाल में फंसा रहे हैं. उनके पास नई तकनीक है. पूरी तरीके से उनकी ट्रेनिंग हुई है. इसलिए उन्हें पकड़ना आसान नहीं है.

खुद जागरूक होना होगा

क्विकहील के ज्वाइंट एमडी संजय काटकर ने कहा कि अब हमें खुद जागरूक होना होगा. उन्होंने आगे कहा कि ऑनलाइन दुनिया से हमारी ओवर-फैमिलरटी हो गई है. लोग बिना किसी झिझक के आसानी से अपना डेटा ऑनलाइन डाल देते हैं. दूसरी ओर, साइबर अपराधी हमेशा नई और एडवांस्ड तकनीकों को समझते रहते हैं. हमारी विकसित होती तकनीकें हमलावरों के लिए नए दरवाजे खोल रही हैं और कई बार सुरक्षा एक बाद की बात होती है, जब कोई व्यक्ति इसकी की चपेट में आता है, तब वह सोचने लगता है कि उसे क्या करना चाहिए.

सभी रास्ते हो गए डिजिटल

प्रदीप गुप्ता ने कहा कि हमारे प्राइवेट और पब्लिक लाइफ के लगभग सभी रास्ते डिजिटल हो गए हैं और इसमें पैसा भी शामिल है. UPI भुगतान का उपयोग करना अब आम बात हो गई है, लेकिन इसके साथ सुरक्षा जोखिम भी जुड़े हैं. उन्होंने बताया कि हमारी चिंताएं इससे कहीं ज़्यादा होनी चाहिए क्योंकि 99 प्रतिशत धोखाधड़ी की रिपोर्ट ही नहीं की जाती है.

क्यों मुश्किल होता है रिपोर्ट करना?

बहस का दूसरा पहलू धोखाधड़ी वाले कॉल-सेंटर हैं जो पूरे भारत में ऑपरेट होते हैं. चाहे वह नोएडा हो या पश्चिम बंगाल, लेकिन उनके आसपास के नियम स्पष्ट नहीं हैं. कनिष्क गौर ने कहा कि अगर नोएडा में कोई धोखाधड़ी वाला कॉल-सेंटर चल रहा है और वे अमेरिका में अटैक कर रहे हैं, तो जब तक कार्रवाई करने के लिए सही अधिकारी को शिकायत नहीं की जाती है, तब तक यह बहुत मुश्किल है.

किसी भी अंतरराष्ट्रीय अपराध के लिए इसकी सूचना केंद्रीय जांच ब्यूरो को देनी होती है, फिर केंद्रीय जांच ब्यूरो को राज्य पुलिस के साथ मिलकर काम करना होता है. प्राधिकरण और नौकरशाही के ये स्तर और साइबर अपराधों के भौगोलिक पहलू अक्सर उन्हें रिपोर्ट करना और हल करना मुश्किल बनाते हैं.

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