इन आसान स्टेप्स में समझिए कैसे चुना जाता है अमेरिका का राष्ट्रपति, बेहद पेचीदा होता है महीनों का ये सफर
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया काफी पेचीदा और दिलचस्प होती है. इसमें प्राइमरी और कॉकस से लेकर इलेक्टोरल कॉलेज तक कई चरण होते हैं, जो अगले राष्ट्रपति का भविष्य तय करते हैं...
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का सफर काफी लंबा, पेचीदा और रोमांचक होता है. ये ऐसा प्रोसेस है जिसमें महीनों की तैयारी, प्रचार और विभिन्न चरणों से गुजरकर आखिरकार एक नेता चुना जाता है. एक ऐसा नेता जो दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक का नेतृत्व करेगा. इस प्रक्रिया में केवल वोटिंग ही नहीं, बल्कि राज्यों, पार्टियों और कई जटिल नियमों की भी अहम भूमिका होती है.
नवंबर 5 को अमेरिकी नागरिकों द्वारा राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान किया जाएगा, लेकिन इसके लिए महीनों पहले से कैंडिडेट्स अपना प्रचार शुरू कर दिया था. अमेरिका के सियासी दंगल में इस बार रिपब्लिकन पार्टी के तरफ से डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार कमला हैरिस के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है.अब बस कुछ ही घंटों में इनके महीनों या कहें सालों के मेहनत का फल दिखना शुरू हो जाएगा. आर्टिकल में परत दर परत समझेंगे कैसे होता है अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव.
पहला चरण: प्राइमरी और कॉकस
अमेरिकी चुनाव प्रक्रिया में प्राइमरी और कॉकस महत्वपूर्ण चरण हैं, जिनका इस्तेमाल पार्टियां अपने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का चयन करने के लिए करती हैं. दोनों का उद्देश्य यह है कि पार्टी के सदस्यों और समर्थकों की राय के आधार पर उस उम्मीदवार का चुनाव हो सके जो आखिरकार राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी का प्रतिनिधित्व करेगा. ये दो तरीके होते हैं जिनसे पार्टियां अपने उम्मीदवारों का चयन करती हैं.
- कॉकस: कॉकस प्रक्रिया एक प्रकार की मीटिंग होती है, जिसमें पार्टी के सदस्य एक जगह इकट्ठे होकर अपने पसंदीदा उम्मीदवार का समर्थन करते हैं. इसमें अधिकतर समय चर्चा और बहस होती है, और फिर समूहों में बंटकर अपने उम्मीदवार का समर्थन जताया जाता है.
- प्राइमरी: इसमें पार्टी के सदस्य गुप्त मतदान के जरिए अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए वोट डालते हैं.प्राइमरी के जरिए उम्मीदवार को डेलीगेट्स (प्रतिनिधियों) का समर्थन मिलता है, जो उस उम्मीदवार का समर्थन पार्टी के नेशनल कन्वेंशन में करते हैं. सबसे ज्यादा डेलीगेट्स जीतने वाला उम्मीदवार पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के चुनाव में खड़ा होता है.
इस प्रक्रिया में, आयोवा, न्यू हैम्पशायर, नेवादा और साउथ कैरोलाइना जैसे राज्यों के नतीजे अहम माने जाते हैं. दोनों ही प्रक्रिया डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टियों में अलग-अलग तरीकों से अपनाई जाती हैं.
दूसरा चरण: नेशनल कन्वेंशन
प्राइमरी और कॉकस के बाद, हर पार्टी एक नेशनल कन्वेंशन करती है जिसमें अपने फाइनल राष्ट्रपति उम्मीदवार का चुनाव करती है. इसके लिए पहले चरण में चुने गए प्रतिनिधि (Delegates) यहां आकर अपने पसंदीदा उम्मीदवार को समर्थन देते हैं. अगर कोई भी उम्मीदवार बहुमत नहीं हासिल कर पाता तो एक और वोटिंग राउंड आयोजित किया जाता है. यहीं पर पार्टी का राष्ट्रपति उम्मीदवार अपने “रनिंग मेट” यानी उपराष्ट्रपति उम्मीदवार का चुनाव भी करता है.
तीसरा चरण: जनरल इलेक्शन
जनरल इलेक्शन के दौरान पूरे अमेरिका के लोग राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के लिए वोट डालते हैं. वोट डालते समय लोग अपने पसंदीदा उम्मीदवार को चुनते हैं. जनरल इलेक्शन हर चार साल में नवंबर के पहले मंगलवार को होता है. पर चुनाव की यह प्रक्रिया यहीं नहीं रुकती.
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चौथा चरण: इलेक्टोरल कॉलेज
जनरल इलेक्शन के बाद राष्ट्रपति का चयन सीधे लोगों द्वारा नहीं बल्कि इलेक्टोरल कॉलेज द्वारा किया जाता है. इलेक्टोरल कॉलेज एक ऐसा प्रोसेस है जिसमें हर राज्य के प्रतिनिधि (इलेक्टर्स) वोट डालते हैं और यह तय करते हैं कि कौन राष्ट्रपति बनेगा.
आम जनता नवंबर के पहले मंगलवार को अपने पसंदीदा राष्ट्रपति उम्मीदवार के लिए वोट करती है, लेकिन तकनीकी रूप से वे राष्ट्रपति के बजाय अपने राज्य के इलेक्टर्स का चुनाव कर रहे होते हैं. अधिकतर राज्यों में जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा वोट पाता है, उसे उस राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट मिलते हैं. केवल मेन और नेब्रास्का में वोट का वितरण अलग तरीके से होता है.
चुने गए इलेक्टर्स दिसंबर महीने में एक बैठक करते हैं और अपने वोट डालते हैं. इन वोटों की गिनती जनवरी में होती है और फिर कांग्रेस इसे प्रमाणित करती है. अमेरिका में कुल 538 इलेक्टर्स होते हैं. जिस उम्मीदवार को 270 या उससे अधिक इलेक्टोरल वोट मिलते हैं, वह राष्ट्रपति के पद के लिए चुना जाता है.
अंतिम चरण: शपथ ग्रहण
चुनाव जीतने वाले नए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति जनवरी में शपथ ग्रहण करते हैं. इसके बाद वे अपने पद की जिम्मेदारियां संभालते हैं और अगले चार साल तक शासन में रहते हैं.
मुख्य स्विंग स्टेट्स जैसे फ्लोरिडा, पेनसिलवेनिया और विस्कॉन्सिन पर उम्मीदवार ज्यादा फोकस करते हैं क्योंकि इनका वोट किसी भी तरफ जा सकता है. इन राज्यों को जीतने से उम्मीदवार के 270 इलेक्टोरल वोट हासिल करने की संभावना बढ़ जाती है.अमेरिका का यह चुनावी न केवल देश के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए बेहद अहम है.
मौजूदा चुनावी दंगल पर एक नजर
अमेरिकी चुनावी दौड़ में इस बार की रेस काफी रोचक है. कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच कड़ी टक्कर है और विभिन्न स्विंग राज्यों में दोनों उम्मीदवार मामूली बढ़त बनाए हुए हैं. फाइनेंशियल टाइम्स और रीयलक्लीयर पॉलिटिक्स के आंकड़ों के मुताबिक, कमला हैरिस के पास नेवादा और विस्कॉन्सिन जैसे कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में थोड़ी बढ़त है, जहां वह तीन से चार अंकों से आगे हैं. वहीं, डोनाल्ड ट्रम्प ने एरिजोना, जॉर्जिया, और फ्लोरिडा जैसे बड़े स्विंग राज्यों में बढ़त बना रखी है, खासकर फ्लोरिडा में, जहां वह लगभग 5 अंकों से आगे चल रहे हैं.