17 साल के निचले स्तर पर होकर भी भारत की टेंशन बढ़ा रहा चीनी बाजार, आज की गिरावट में भी तो हाथ नहीं?
चालबाजी और धोखा हमारे पड़ोसी चीन की हर सांस में बसा है. चीन का कोई भी कदम कभी सीधा और सिंपल नहीं होता. चीन की इसी फितरत के चलते दुनिया के ज्यादातर बड़े देश चीन के साथ बहुत सतर्कता से कारोबार कर रहे हैं. इसका असर चीनी अर्थव्यवस्था पर दिखने लगा है. चीनी बाजार 17 साल के निचले स्तर पर हैं. जानते हैं, कैसे और क्यों चीन के गिरते बाजार भारतीय बाजारों के लिए चिंता बढ़ा रहे हैं.
चीनी शेयर बाजार के बेंचमार्क इंडेक्स करीब दो दशक के सबसे निचले स्तर पर हैं. वहीं, भारतीय शेयर बाजार अपने सर्वोच्च शिखर पर हैं. भारतीय बाजार की इस शिखर यात्रा में विदेशी निवेशकों का अहम योगदान है. बाजार विश्लेषकों के मुताबिक कोविड महामारी के बाद दुनियाभर के निवेशकों का चीन से भरोसा उठने लगा, तो उन्होंने भारतीय बाजारों में निवेश शुरू किया. घरेलु औ विदेशी दोनों निवेशकों की तरफ से मिल रहे भरोसे के चलते भारतीय बाजार, खासतौर पर बेंचमार्क इंडेक्स सेंसेक्स और निफ्टी दुनिया के तमाम बाजारों को आउट परफॉर्म करते दिखे हैं. लेकिन, अब चीन अपने बाजारों की चाल बदल रहा है. महीने भर के भीतर ही चीन दो बार ब्याज दरों में कटौती का ऐलान कर चुका है. पहले ही एक दशक से निचले स्तर पर चीनी बाजार निवेशकों को ललचा रहे हैं.
पिछले सप्ताह चीनी सरकार ने ऐलान किया कि बाजार को संभालने के लिए हर तरह की मदद दी जाएगी. इसके बाद से चीनी बाजार में महज एक सप्ताह में 2008 के बाद से सबसे बड़ा उछाल आया है. अकेले शुक्रवार को चीनी बेंचमार्क इंडेक्स सीएसआई 300 में 4.5% का उछाल आया. एक सप्ताह में इसमें 15.7% का उछाल आ चुका है. दुनियाभर की तमाम रेटिंग एजेंसी और ब्रोकरेज हाउस ने चीनी बाजारों को वैल्यू बाई करार दिया. इसका असर अब चीनी बाजार में विदेशी निवेशकों की बढ़ती भागीदारी के तौर पर दिख रहा है.
पिछले दिनो मशहूर निवेशक माइकल बरी ने चीनी कंपनी अलीबाबा में हिस्सेदारी बढ़ाई. बरी के पोर्टफोलियो में अलीबाबा की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा हो गई है. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक बरी का मानना है कि मैन्यूफैक्चरिंग हो या गवर्नेंस हर मामले में चीन आज भी भारत से आगे है. चीन की कंपनियां भी भारतीय कंपनियों से ज्यादा मजबूत आधार रखती हैं. ऐसे में जब भारतीय बाजार सर्वोच्च स्तर पर हैं और चीनी बाजार 17 साल के निचले स्तर पर, तो जाहिर तौर पर चीनी बाजार में निवेश समझदारी है. चीनी बाजार बहुत दिनों तक ऐसा नहीं रहने वाला है. जल्द ही लोग समझ जाएंगे.
अभी चीन से मुकाबला नहीं कर सकता भारत
चीन और भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि को लेकर कई विशेषज्ञों का कहना है कि भारत भले ही 6-7% की ग्रोथ रेट हासिल करे, लेकिन दोनों देशों की अर्थव्यवस्था के आकार में बहुत बड़ा फासला है. चीन 20 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था है. वहीं, भारत करीब 4 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था है. इस लिहाज से दोनों देशों की तुलना व्यावहारिक नहीं है. चीन के सामने चुनौतियों से जूझने के लिए सबकुछ है. एसे में स्मार्ट इन्वेस्टर मुश्किल दौर में चीन के बाजार में निवेश कर ज्यादा मुनाफ लेना ही चाहेंगे.
यूरोपीय निवेशकों को भा रहा चीन
वहीं, जर्मनी और इटली जैसे देशों के निवेशक भी चीनी बाजार में निवेश को समझदारी मान रहे हैं. उनका मानना है कि चीन दुनिया में लक्जरी वस्तुओं का सबसे बड़ा उभोक्ता है. अगर चीनी अर्थव्यवस्था में स्थिरता और वृद्धि आएगी, तो यूरोपीय देशों को भी इसका लाभ मिलेगा. ऐसे में भारत के बजाय वे भी चीन में निवेश को प्राथमिकता दे रहे हैं.
भारत की तुलना में कितना सस्ता चीनी बाजार
भारत की तुलना में चीनी बाजार बहुत सस्ता है. यह भारत के 30 गुना औसत PE की तुलना में 8 गुना PE पर कारोबार कर रहा है। हैंग सेंग 1.08 गुना बुक वैल्यू पर कारोबार कर रहा है, जबकि निफ्टी 50 3.8 गुना बुक वैल्यू पर है. 23 सितंबर को गेव रिसर्च ने अपने एक रिसर्च नोट में कहा, चीन में निवेश के लिए हमारे पास एक दुर्लभ संयोग है. यहां का शेयर बाजार सोने के मुकाबले बहुत कम वैल्यू पर मौजूद है. पिछले 20 वर्षों में ऐसा केवल दो बार पहले हुआ है. पहली बार 2005 के अंत में जब दो वर्षों में बाजार सोने के मुकाबले पांच गुना बढ़ गया. दूसरी बार 2012 के अंत में हुआ था, जब तीन वर्षों में बाजार तीन गुना बढ़ गया. हमारा निष्कर्ष यही है सोने के बजाय निवेशकों को चीनी शेयर खरीदने चाहिए.
एक वर्ष में निफ्टी बनाम हेंग सेंग
चीनी बेंचमार्क इंडेक्स हेंग सेंग और निफ्टी के इस ग्राफ से साफ हो जाता है कि दोनों बाजारों की क्या स्थिति है. क्यों यूरोपीय निवेशकों को चीनी बाजार में दिलचस्पी है. 1 अगस्त, 2023 से 26 सितंबर, 2024 के बीच अगर दोनों बाजारों के प्रदर्शन की तुलना की जाए, तो निफ्टी 32% से ज्यादा बढ़ चुका है. वहीं, हेंग सेंग माइनस में 0.45% के स्तर पर है. चीनी सरकार की तरफ से मिले भरोसे के बाद विदेशी निवेशकों का चीनी बाजार की तरफ आकर्षित होना सहज है. ऐसे में इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता कि आज की गिरावट में विदेशी निवेशकों की निकासी के पीछे चीनी बाजार में एंट्री की तैयारी हो सकती है.