गरीबी पर विश्व बैंक की रिपोर्ट, कहां ठहरता है भारत, जानें सरकार के दावों और हकीकत में कितना फासला?

सरकार चाहे कोई भी रहे, दावा एक ही रहता है कि गरीबी खत्म की जा रही है. विश्व बैंक की "पॉवर्टी, प्रॉस्पेरिटी और प्लॅनेट पाथवेज आउट ऑफ द पॉलीक्राइसिस" में पूरी दुनिया के साथ ही भारत में गरीबी खत्म करने के सरकार के दावों की पड़ताल की है.

धारावी स्लम Image Credit: Soltan Frédéric/The Image Bank/Getty Images

देश आज भी करीब 13 करोड़ लोग चरम गरीबी के दायरे में हैं. चरम गरीबी का मतलब है कि इन लोगों की दैनिक आय 200 रुपये से भी कम है. मोटे तौर पर महीने के 5,000 रुपये या इससे कम कमाने वाले लोगों को चरम गरीबी का शिकार माना जाता है. संख्या के लिहाज से देखें, तो यह इतनी बड़ी है कि दुनिया के कई बड़े देशों की इतनी आबादी नहीं, जितनी भारत में चरम गरीबी है.

विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट मे बताया है कि 1990 के बाद से भारत में गरीबी कम करने पर बड़ा काम हुआ है. इसके अलावा पिछले एक दशक में कई अहम बदलाव हुए हैं. लेकिन, संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के तहत पूरी दुनिया को चरम गरीबी से मुक्त करने के लक्ष्य से भारत पिछड़ता दिख रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक 2020-30 के दशक को भारत में गरीबी कम करने के लिहाज से पूरी तरह से कामयाबी भरा नहीं कहा जा सकता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में पिछले एक दशक में भारी कमी आई है. 1990 में यह संख्या 43.1 करोड़ थी. सुरेश तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट के मुताबिक 2010 में यह संख्या करीब 35 करोड़ थी. लेकिन, 2024 में यह संख्या घटकर 12.9 करोड़ रह गई है.

तो 1990 से ज्यादा गरीब होंगे

रिपोर्ट में बताया गया हैं कि भारत में गरीबी के आंकड़े 2.15 डॉलर प्रति दिन के मानक के मुताबिक है. जबकि, भारत जैसे मध्यम आय वर्ग के देश के लिए यह मानक 6.85 डॉलर प्रति दिन रखा गया है. अगर इस मानक के लिहाज से देखें, तो आज भारत में गरीबी रेखा से नीचे जीने वालों की संख्या 1990 की तुलना में ज्यादा हो जाएगी. रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आबादी में तेज वृद्धि इसकी गरीबी की बड़ी वजह है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 2022-23 के लिए जारी घरेलू खपत एवं व्यय सर्वेक्षण (एचसीईएस) में इन नए आंकड़ों पर विचार नहीं किया गया है.

लक्ष्य से चूक रही दुनिया

विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बात नए और पुराने मानकों के इस्तेमाल की नहीं है, बल्कि चिंताजनक बात यह है कि गरीबी के मोर्चे पर दुनिया लक्ष्य से चूक रही है. 2012 में यह तय किया गया था कि 2030 तक दुनिया को चरम गरीबी से मुक्त कर दिया जाएगा. लेकिन, नए मानकों के लिहाज से देखें, तो करीब आधी दुनिया चरम गरीबी के दायरे मे आ जाएगी. इस तरह 2030 तक चरम गरीबी मिटा पाने का लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है.